॥ दीपक त्राटक का अभ्यास ॥

इस त्राटक का अभ्यास वैसे तो कभी भी जब आप को समय मिलेँ किया जा सकता है लेकिन संध्या के समय पर करना अच्छा रहता है क्योँकि पुरा वातावरण शांत रहता है तथा प्रकृति मेँ भी अजीब की मस्ती रहती है । हम तो सुर्योदय व सूर्यास्त के आसपास करते थे ।
यदि हो सके स्नान कर ले नहीँ हाथ पेर धो ले ताकि धुल मिट्टी के कारण हाथ -पैरोँ व शरीर मेँ खुजली ना चले ।
अभ्यास के लिये एक एकान्त जगह हो जहाँ कोई विक्षेप ना हो , यदि कमरे मेँ मंद प्रकाश हो तो अच्छा है नहीँ पुरा अधेरा कर ले । अभ्यास के लिये कमरे का ऐसा स्थान चुने जो हवा लगभग स्थिर हो । जिससे दीपक की लौ बार बार हिले नहीँ । तत्पश्चात एक मोटा आसन और दीपक ,एक फुलबत्ती बनाये । दीपक मेँ घी हो तो अच्छा है कमरा सुगन्धित हो जायेगा नहीँ तो तेल से काम चलाये और वो भी नहीँ हो तो मोमबत्ती का प्रयोग कर सकते है ।
अब दीपक या मोमबत्ती को अपने आसन से लगभग तीन या चार या पाँच (जहाँ से आपको आसानी से दिख जाये व आँखे पर भार ना पड़े ) फुट की दूरी पर अपनी आँखो की सीध मेँ स्थापित करे । अब दीपक जला दे व लौ को स्थिर होने दे । फिर अपने आसन पर सुखासन ,वज्रासन ,पद्मासन या सिद्धासन जिसमेँ बैठने मेँ परेशानी ना हो ,मेँ बैठे |
पहले दो तीन श्वास लम्बे लेकर शरीर को शांत करे फिर निश्चय से लौ पर दृष्टिपात करे , लौ कि गहराई मेँ देखे । बस आप और केवल लौ ।
अभ्यास के लिये एक एकान्त जगह हो जहाँ कोई विक्षेप ना हो , यदि कमरे मेँ मंद प्रकाश हो तो अच्छा है नहीँ पुरा अधेरा कर ले । अभ्यास के लिये कमरे का ऐसा स्थान चुने जो हवा लगभग स्थिर हो । जिससे दीपक की लौ बार बार हिले नहीँ । तत्पश्चात एक मोटा आसन और दीपक ,एक फुलबत्ती बनाये । दीपक मेँ घी हो तो अच्छा है कमरा सुगन्धित हो जायेगा नहीँ तो तेल से काम चलाये और वो भी नहीँ हो तो मोमबत्ती का प्रयोग कर सकते है ।
अब दीपक या मोमबत्ती को अपने आसन से लगभग तीन या चार या पाँच (जहाँ से आपको आसानी से दिख जाये व आँखे पर भार ना पड़े ) फुट की दूरी पर अपनी आँखो की सीध मेँ स्थापित करे । अब दीपक जला दे व लौ को स्थिर होने दे । फिर अपने आसन पर सुखासन ,वज्रासन ,पद्मासन या सिद्धासन जिसमेँ बैठने मेँ परेशानी ना हो ,मेँ बैठे |
पहले दो तीन श्वास लम्बे लेकर शरीर को शांत करे फिर निश्चय से लौ पर दृष्टिपात करे , लौ कि गहराई मेँ देखे । बस आप और केवल लौ ।
इस अभ्यास को 5-10 मिनट से आरम्भ करके आधे घण्टे तक बढ़ाया जा सकता है ।
अभ्यास के बाद स्वच्छ व ठण्डे जल से आँखे धो ले ।
इस अभ्यास से सप्ताह भर या 10-15 दिन मेँ आपमेँ बेधक दृष्टि आ जायेगी ।
बशर्ते कि अभ्यास नियमित व नियत साफ होनी चाहिये वरना इस शक्ति का दुरूपयोग भी हो सकता है ।
ये हमारी अनुभाविक विधि है क्योँकि हम जब दो साल पहले दीपक पर त्राटक करते थे तो दीपक की लौ को दायेँ बाये मौड़ लेते थे । जब दृढ़ इच्छा से दायेँ मोड़ते तो दायेँ मुड़ जाती और जब दृढ़ इच्छा से बायेँ मोड़ते तो बायेँ मुड़ जाती थी । किन्तु अब अभ्यास छोड़ दिया तो अब नहीँ कर सकते । तथा जब भी किसी व्यक्ति की आँखोँ मेँ देखते हुये बात करते थे तो बातोँ ही बातोँ मेँ वो हमारे विचारोँ का अनुगामी हो जाता था ।
किन्तु आप से निवेदन व आशा है कि इसका प्रयोग केवल अपनी एकाग्रता बढ़ाने मेँ करे किसी पर प्रभाव जमाने मेँ नहीँ ।
अभ्यास के बाद स्वच्छ व ठण्डे जल से आँखे धो ले ।
इस अभ्यास से सप्ताह भर या 10-15 दिन मेँ आपमेँ बेधक दृष्टि आ जायेगी ।
बशर्ते कि अभ्यास नियमित व नियत साफ होनी चाहिये वरना इस शक्ति का दुरूपयोग भी हो सकता है ।
ये हमारी अनुभाविक विधि है क्योँकि हम जब दो साल पहले दीपक पर त्राटक करते थे तो दीपक की लौ को दायेँ बाये मौड़ लेते थे । जब दृढ़ इच्छा से दायेँ मोड़ते तो दायेँ मुड़ जाती और जब दृढ़ इच्छा से बायेँ मोड़ते तो बायेँ मुड़ जाती थी । किन्तु अब अभ्यास छोड़ दिया तो अब नहीँ कर सकते । तथा जब भी किसी व्यक्ति की आँखोँ मेँ देखते हुये बात करते थे तो बातोँ ही बातोँ मेँ वो हमारे विचारोँ का अनुगामी हो जाता था ।
किन्तु आप से निवेदन व आशा है कि इसका प्रयोग केवल अपनी एकाग्रता बढ़ाने मेँ करे किसी पर प्रभाव जमाने मेँ नहीँ ।
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